सीखने से सिखाने तक के सफर में खुद मे बदलाव

आविष्कार के सफर में यह मेरा तीसरा ब्लॉग है। इन छह महीनों में मैंने बहुत कुछ सीखा है। उन में से कुछ बातें आज मैं इस ब्लॉग के जरिये आपसे साझा कर रही हूँ। आविष्कार में सीखने से सिखाने तक के सफर में मुझमें बहुत बदलाव आया है। आविष्कार में मैंने जो पढ़ा है वह मैने खुद के लिए तो सीखा ही है लेकिन किसी को सिखाने के लिए भी सीखा है।

Knowledge

इन छह महीने मैंने प्राथमिक गणित के विषय पढ़े हैं और उस में से कुछ विषय मैंने अपने इंटर्नशिप के बच्चों को पढ़ाए भी हैं। इन सभी विषयों में से मुझे सबसे अच्छा विषय भिन्न लगता है क्योंकि जब मैने अपनी कक्षा में भिन्न को पढ़ा था तो मैने सिर्फ उसको रटा था लेकिन उसकी समझ नहीं बनी थी। जब मैने यहाँ उसको पढ़ा और समझा तो मुझे भिन्न के सत्र (session) में बहुत मजा आता था। इस सत्र में मैंने भिन्न की समझ बना ली है।

यह मेरे लिए गर्व की बात है कि अभी मैं बच्चों को भिन्न पढ़ाती भी हूँ। जब मैं बच्चों को पढ़ाती हूँ तो सत्र के बीच में बहुत सी चुनौतियों का सामना भी करना पड़ता है, जैसे कि: एकदम से नेटवर्क का चला जाना, या फिर मेरी भाषा सही न होना, उनके प्रश्न में प्रश्न करके उन्ही से उत्तर निकालना, आदि चुनौतियाँ आती रहती है।

Skills learnt

बच्चों को पढ़ाने के लिए मैंने बहुत से कौशल सीखे हैं और उनका इस्तेमाल भी करती हूँ, जैसे कि: Google Suite, Canva, Inshot, Lesson plan, making presentation, google slides, story telling, बच्चों में सामाजिक और भावनात्मक विकास, बच्चों के साथ अच्छा संबंध बनाना।  

इसमें मैंने Google Docs. में ब्लॉग लिखना, लेसन प्लान बनाना, बिग आईडिया लिखना आदि सीखा। Canva में पोस्टर, प्रेजेंटेशन आदि बनाना सीखा। Inshot में मैंने वीडियो एडिट करना सीखा।

Mindset about Math

जब मैं स्कूल में गणित पढ़ती थी तब मैंने गणित को सिर्फ रटा और याद किया था लेकिन गणित में मेरी कभी समझ बनी ही नहीं। मैं सिर्फ रट लेती थी। इसलिए मेरा कभी गणित से अच्छा संबंध नहीं बना और मैं गणित से भागती थी। ये मेरी स्कूल के समय से गणित को लेकर मानसिकता थी।

पहले तो मुझे पढ़ाना अच्छा नहीं लगता था। मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि मैं कभी बच्चों को पढ़ाऊँगी क्योंकि मेरे अनुसार एक अध्यापक को बच्चों को पढ़ाने के अलावा, उनकी भावनाओं को समझना चाहिए, उनसे दोस्ती करनी चाहिए ताकि बच्चे उनसे कभी भी सवाल पूछने से डरे नहीं। पहले मेरे में ऐसे कोई गुण नहीं थे कि मैं बच्चों को पढ़ाती। लेकिन आविष्कार में आने के बाद मैंने सिखा कि बच्चों को किस तरह से पढ़ाया जाता है, बच्चों को सत्र में कैसे engage रखना है ताकि वह सत्र में एक्टिव रहें। अभी इंटर्नशिप में बच्चों की क्लास लेकर भावनाओं के बारे में जाना, उनको किस तरह क्लास में engage रखना है, गणित का concept उनको कैसे पढ़ाना है या कैसे इंस्ट्रक्शंस होने चाहिए कि उनको समझ में आ जाए। बच्चों को पढ़ाने से मेरे अंदर सबसे बड़ा बदलाव यह आया है कि हमेशा धैर्य (patience) रखना सीख गयी हूँ जो कि मुझसे पहले होता ही नहीं था। 

अब गणित को लेकर मेरी मानसिकता बदल गयी है, क्योंकि अब गणित को मैं अपने आस पास की दुनिया से जोड़ पाती हूँ। गणित को मैं अपनी निजी जरूरतों के हिसाब में भी इस्तेमाल कर पाती हूँ। 

Values

मेरे मूल्य यह हैं कि मैं एक महनती लड़की हूँ, टीम में काम करती हूँ, किसी भी चीज़ को जल्दी सीख लेती हूँ, जिम्मेदारी लेती हूँ, हमेशा धैर्य रखती हूँ, कुछ संदेह (doubt) हो तो सवाल करती हूं, सबकी respect करती हूँ और कभी भी शारीरिक और मानसिक रूप से परेशान फिर भी मेरे चेहरे में हमेशा मुस्कुराहट होती है।

आशा करती हूं कि मेरा ब्लॉग आपको पसंद आया होगा और इस ब्लॉग से आपको प्रेरणा मिली होगी। 

-Arti Dhiman
Aavishkaar Fellow, 2021

मेरी गणित की समझ बनने और बनाने तक का मेरा अनुभव एवं उसमे हुई तबदीली

सीखने और समझ बनाने में बहुत अंतर को दर्शाते हुए

कई लोगो के मुँह से ये बाते अक्सर सुनने को मिली हैं मुझे कि गणित लड़कियों की बस की बात नहीं है। गणित सीखना, गणित हल करना, गणित की पढ़ाई करना आदि फ़िज़ूल बातें हैं। पर मुझे आज तक ये पता नहीं चला कि आखिर ऐसी क्या बात है कि लोग ये सोच पाते हैं कि गणित लड़कियों की बस की बात ही नहीं है गणित सीखना ? उनके क्या ऐसे तर्क है जिससे उनके ज़ेहन में गणित की कमजोरी के नाम पर लड़कियों की क्षवी नज़र आती है ? मेरे यह लिखने से ये तात्यपर्य नहीं है कि मैं केवल पुरुषों को लेकर टिप्पणी कर रही हूँ। मेरे इस तरह की बातों में वे महिलाएं या लड़कियां भी शामिल है जिनको ऐसा लगता है कि गणित उनके समझ से बाहर है। 

मेरा नाम निधि है। केवल नाम बताना ही मेरी पहचान तो नहीं , इसके आगे भी बहुत कुछ बताना मेरी पहचान है जैसे मैं पिछले सात महीनों से आविष्कार और साझे सपने नाम की संस्थाओं में प्राथमिक शिक्षक की प्रशिक्षण कर रही  हूँ। इसके साथ ही बच्चो का विकास किस तरह से होता है उनकी भावनाओं को समझना आदि की जानकारी  मुझे अश्वत्था संस्था  से मिल रही है।  

मेरी गणित की समझ एवं पहले की समझ में हुई कुछ तब्दीलियां

गणित में निपूर्ण तो नहीं और न ही  ज्यादा अनुभवी हूँ पर इन सात महीनों में मैंने जितनी  भी गणित की समझ बनायीं है उससे ऐसा लगता है कि काश हमें शुरू से ही ऐसे  गणित पढ़ाया जाता, तो शायद आज लोग ये नहीं कहते कि गणित हमारे बस की बात नहीं है। मैंने आविष्कार में गणित के हर एक विषय की समझ प्रयोग कर के बनाई है जैसे,  यदि मुझ में भिन्न की समझ बनानी है तो सबसे पहले हमे ये सोचना होगा कि बच्चे किस तरह से सिखने में सक्षम हैं। यदि हमे उनमे आधा, चौथाई, तिहाई क्या होता है इसकी समझ बनानी है तो उन्हे उस तरह के ही उदहारण देंगे जिस तरह की वस्तुओं से वे परिचित हैं। यदि बच्चे गांव के हैं और उन्हें कहेंगे कि एक पिज़्ज़ा है, उसके 6 भाग  करते हैं तो उसका एक भाग क्या कहलायेगा, तो इसका उत्तर तो शायद बोल भी दे लेकिन वे अपनी जिंदगी से जोड़ नहीं पाएंगे और जब जिंदगी से नहीं जोड़ पाएंगे तब उनकी समझ बनेगी ही नहीं और वे कभी इसका प्रयोग ही नहीं करना चाहेंगे।

एक पूरी रोटी

पिज़्ज़ा की जगह यदि हम बच्चो को भिन्न सिखाते समय ये उदाहरण दें कि आपके पास एक रोटी है और आपको इस रोटी के दो लोगो में बराबर बराबर बांटना है तो हर एक के हिस्से में कितने रोटी के भाग आएंगे तो उस बच्चे के मन में उस एक रोटी की तस्वीर बनने लगेगी और वो करने लग जायेगा की हमारे पास दो लोग हैं और मैं उनमे रोटियों को दो बराबर हिस्सों में बाँट रही हूँ।  तो वो बता सकती है कि हर एक के हिस्से में आधी आधी रोटी आएगी।  

पहले मेरी केवल सीख थी कि इस तरह से गणित बनाया जाता है जिसमे फॉर्मूले होते है।  भिन्न की बात करूँ तो उसमे केवल लगता था कि दो ऐसी संख्याएँ हैं जो की एक रेखा के ऊपर होती है और दूसरी संख्या रेखा के नीचे होती है पर ऐसा क्यों होता है आज तक पता नहीं था। पर अब मेरी समझ बन गयी है कि जो संख्या पड़ी रेखा के नीचे लिखी जाती है वो ये दर्शाती है कि कितने भाग मिलाकर पूरा एक बनाते हैं और उसके जैसे कितने भाग लिए गए हैं,  वो पड़ी रेखा के ऊपर लिखा गया है।   

सीखने और सिखाने के दौरान मेरी कौशल

सीखने और सिखाने से मेरा तात्पर्य पढ़ने और पढ़ाने से है। जब मैंने बच्चो को पहली बार पढ़ाना शुरू किया तो उस समय मुझे काफी डर लगता था। पर अब मैं उनसे बहुत चीजे सीख गयी हूँ,  जैसे पढ़ाने से पहले मेरी क्या तैयारी होनी चाहिए।  उनके लिए पाठ की योजना बनाना , प्रस्तुति (presentation) बनाना, feedback लेना सभी चीजे सीख गयी हूँ। अपनी बातों को उनके पास किस तरह से रखूं कि वो एक बार में समझ पाए ये तो अभी मुझे सीखना बाकी है पर मैं उनसे इस तरह से बात कर पाती हूँ जिससे वो आसानी से समझ पाते हैं।

मूल्य

मूल्य से मेरा उतना खास मतलब तो है नहीं, और न ही मुझे मूल्य के बारे में खुछ खास पता है, लेकिन मेरे मूल्य क्या है मेरी जिंदगी में वो कहना आसान होगा। मैं ये तो नहीं कहती हूँ कि मुझ से सारे काम हो ही जाते है पर जो भी काम करने को मिलता है, उसे जल्दबाज़ी में नहीं, समय लेकर ही करती हूँ। अगर कोई काम समूह में करने को मिल जाए तो उसे भी मैं बहुत ही निष्ठा से करती हूँ। इस तरह मेरी गणित की समझ बनी और मेरी सोच कुछ इस तरह से बदली।

-Nidhi Kumari, Aarohan Fellow 2021

गणित शिक्षक के रुप में मेरे पहले 2 सप्ताह

 एक शिक्षक को पढ़ते हुए देखना जितना आसान लगता है , उतना  ही  खुद एक शिक्षक  बनकर पढ़ाना  मुश्किल  होता हैं ।

Nicky

ऑनलाइन सत्र के दौरान एक गणित शिक्षक के रूप में मेरे पहले दो सप्ताह का अनुभव बहुत ही यादगार रहा। इन सत्रों में मैंने बहुत कुछ सीखा और समझा भी। मैंने छात्रों से दोस्ती की। परिचय किया और गणित को एक्टिविटीज तथा गेम्स के द्वारा सिखाया तथा खुद भी सीखा। सत्र के बाद मुझे बहुत अच्छा महसूस हुआ क्योंकि शिक्षक के रुप में मेरे पहले सत्र अच्छे गए। बच्चों के साथ मिल कर मेरे पढ़ाने के तरीके मे बदलाव आया जो मुझे खुद में दिखाई दे रहा है। ये सत्र लेने के लिए मैंने कुछ इस तरह तैयारी की-

पिछले तीन महीने एक छात्र के रुप में –

इन तीन महीनों में मैने अविष्कार में एक छात्रा के रुप में बहुत कुछ सीखा और समझा है। यहां पर जिस तरह से गणित गतिविधियो द्वारा आस पास की दुनियां से जोड़ा जाता हैं इस तरह से मैने गणित कभी नहीं सीखा। यहां आकर गणित के प्रति मेरा नजरिया ही बदल गया। अब मैं गणित को सोचती तथा आस पास की दुनियां में गहराई से देख पाती हूं। अभी तक मैंने संख्याओं की समझ, संख्या का स्थान और मान, जोड़ घटाव, गुणा, भाग, आकृतियों की समझ, ज्यामिति, डाटा संधारण तथा नाप तोल आदि पड़ चुकी हूं। पहले मैं गणित को सिर्फ खुद के लिए पढ़ती और समझती थी, लेकिन अब मैं बच्चों को कैसे पढ़ाया जाता है उसके बारे में सीख रही हूं।

किसी चीज को सीखने में जीतनी मुश्किलें आती  है, उससे दुगुना किसी को  सिखाने  में मुश्किलें होती है। पिछले तीन  महीने से किस तरह से पढ़ना है ये सिख रही थी , पर अब बारी आयी पढ़ाने की।

Nidhi


तैयारी-

अवधारणा को वितरित करने के लिए मैंने और मेरी सभी साथियों ने सबसे पहले योजना बनाई कि कैसे बच्चों को पढ़ाना है? हमने हर अवधारणा का लेसन प्लान बनाया। उसे अपने साथी, जिनके साथ मैं टीम में काम कर रही थी तथा फैसिलिटेटर के साथ साझा किया और फीडबैक लिया कि किस तरह से उसे और सुधार सकती हूं। इससे मुझे बहुत मदद मिली।

अपनी अवधारणा को ऑनलाइन कक्षा में बच्चों के समक्ष कैसे लेके जाएं इसके लिए लेसन प्लान के हिसाब से मैंने टीम के साथ स्लाइड बनाई। स्लाइड इस प्रकार से बनाई जिससे मैं क्लास इंट्रस्टिंग बना पाऊं तथा बच्चों को पढ़ने में मजा आए। वह बोर ना हों इसके लिए बहुत सारी एक्टिविटी तथा गेम्स स्लाइड में डाली। मैंने परिचय और बेसलाइन प्रश्न की स्लाइड्स बनाई और अपनी प्रेजेंटेशन तैयार की।

प्रेजेंटेशन बनाने के बाद मैंने  देखा कि हम हर एक स्लाइड्स में बच्चों के सामने क्या बोलेंगे, उसके अनुदेश लिखे। उसके बाद मैने सबसे पहले खुद से अनुदेश बोलने की तैयारी की। उसके बाद अपने टीम और फैसिलिटेटर के साथ मॉक किया ।

डिजिटल उपकरणों का उपयोग –

ऑनलाइन कक्षाएं लेने के लिए मैंने डिजिटल उपकरण जैसे जूम ऐप, स्लाइड, लैपटॉप, एनोटेशन पैड आदि का इस्तेमाल किया। इन्हे इस्तेमाल करने से मुझे काफी सहायता मिली लेकिन उसके साथ साथ कुछ चुनौतियों का सामना भी करना पड़ा जैसे लैपटॉप में खराबी तथा नेटवर्क सही से ना चलने के कारण स्लाइड बनाने मे कठिनाई तथा क्लास में बार-बार ड्रॉप होना। उसके अलावा उपकरणो को इस्तेमाल करने में परेशानी हुई।

इंटरव्यू

इंटर्नशिप के लिए जब मुझे पता चला कि इंटरव्यू देना है तो मुझे घबराहट हो रही थी क्योंकि मैंने कभी इंटरव्यू नहीं दिया था। लेकिन साथ-साथ खुशी भी हो रही थी कि मैं जॉब की दुनिया में कदम रख रही हूं। बहुत सारी भावनाएं मन में आ रही थीं।

एनजीओ में इंटरव्यू देने से पहले मैंने अपने फैसिलिटेटर के सामने मॉक इंटरव्यू दिए। उनके फीडबैक से मुझे बहुत मदत मिली कि किस प्रकार से मैं इंटरव्यू दे सकती हूं और मुझे बोलने में क्या सुधारने की जरूरत है। 

टीम और साथियों का समर्थन –

इन दो सप्ताहों में मुझे मेरे टीम और साथियों का बहुत समर्थन मिला है। अवधारणा को समझाने में मदद, ppt बनाने में सहायता करना, फीडबैक देना आदि में मुझे मेरे टीम और साथियों का बहुत समर्थन मिला। हमने टीम में काम किया और कक्षाएं लेने से पहले एक दूसरे के साथ मॉक भी किए। हम सब अपने आपको लगातार सुधारने मे लगे रहे।

सप्ताहों में पहले सत्र से अंतिम सत्र तक की यात्रा –

इन दो सप्ताहों में पहले सत्र से लेकर अंतिम सत्र की यात्रा बहुत ही मजेदार, अनुभव करने वाली तथा बहुत सी चुनौतियों वाली रही है। पहले दिन ऑनलाइन कक्षा लेने में घबराहट हो रही थी। किस तरह से बच्चों से दोस्ती करूं? किस तरह से अपनी कक्षा को इंट्रेस्टिंग बनाऊं? पहला सेशन मैंने परिचय के ऊपर ही बनाया, जिसमें छात्रों के साथ बातचीत करी, उनके बारे मे जाना । जिसमें सभी छात्र इंगेज हो गए थे। यह सब बातें लगातार दिमाग में चल रही थी परंतु अंतिम सत्र में पहुंचने तक डर भी खतम हो गया और कक्षा में बच्चो से दोस्ती और कक्षा इंट्रेस्टिंग दोनो होने लगी। कभी कभी इंटरनेट की दिक्कत हो रही थी, जिससे छात्रों का समय खराब होता था, मेरा पूरा सेशन खराब हो जाता था। लेकिन सेशन लेने का मतलब ये नहीं कि मैं ही उनको गणित सीखा रही थी वो भी मुझे कुछ न कुछ सीखा रहे थे। जो भी मैं क्लास के दौरान पढ़ाती हूं उसको अलग अलग अवधारणाओं से विजुलाइज करवाने की कोशिश करती हूं। ताकि बच्चों को अधिक रूप से समझ आए। और बहुत चीजों को अपने आसपास देख सकें। सबसे बड़ी बात सेशन के दौरान धैर्य रखना और हमेशा चहरा मुस्कुराता हुआ रहता था, ये मेरे लिए बहुत बड़ी बात थी।

बच्चों से मैं और मेरे साथी सत्र क बाद भी जुड़े रहते हैं- कभी whatsapp ग्रुप के माध्यम से नहीं तो फोन कॉल पर। बच्चे हुमे फोन करके अपने सवाल पूछते हैं या ग्रुप पर भी संदेश भेज देते हैं। बहुत जल्दी उनका हुमसे और हमारा उनसे लगाव बढ़ गया है।

चुनौतियां

चुनोतियाँ  तो बहुत थी जैसे, नेटवर्क की परेशानियाँ , कुछ बच्चे लेट जॉइन होते थे. ,  साइड के अनुसार अनुदेश देना, annotate करने में दिक्कत, बच्चों का जवाब ना देना, डाटा जल्दी ख़तम होने से ज्यादा बच्चो का ज्वाइन नहीं करना , एक साथ सभी बच्चो पर ध्यान देना। , सभी के पास कॉल करके उनसे होमवर्क के लिए बाते करना, लेशन प्लान करना, प्रेजेंटेशन बनाना। धीरे धीरे इनमे से कई चुनौतियाँ खत्म होती दिख रही हैं।

शिक्षण का अनुभव और आपसी चिंतन

सत्र के बाद मैं, मेरे साथी और मेरी टीम के लोग हम सब बैठकर आपस में बात करते कि सत्र कैसा रहा? उसके बारे में बातचीत करते है। और हम यह भी बातचीत करते हैं कि आज हमने क्या नया सीखा क्या इंप्रूव करना चाहते हो, कौन सी बात है जो आगे से ध्यान रखना चाहते हो। इन विषयों के बारे में चर्चा होती है और इन सभी बातों को हम नोटबुक में लिखते हैं। और आपकी क्लास का अनुभव कैसा रहा उसके बारे में बताते हैं

गणित शिक्षक के रूप में मेरे पहले 2 सप्ताह का अनुभव बहुत अच्छा रहा। मैंने पहले कभी बच्चों को पढ़ाया नहीं था। लेकिन जब मैं पहली बार अब पढ़ा रही हूं, तो बहुत मजा आ रहा है और कुछ नया सीखने को भी मिल रहा है।

बचपन में मेरे दिमाग में एक सवाल था की टीचर हमारे इमोशन को देख कर कैसे समझ जाते हैं कि मुझे कितना समझ में आ रहा है और कितना समझ नहीं आ रहा है। मेरे सारे सावलो का जबाब अब मिलाने लगा है।

-Written by Aarohan Fellows

About Aarohan Program

It is a math educators training for women in villages, run by three organisations Sajhe Sapne, Aavishkaar and Ashvattha Learning Communities. It is a one year long program where young women go through training to become educators. Women enrolled in the program are referred to as Aarohan Fellows. 7 fellows of the current cohort- Anjali, Arti, Diksha, Nicky, Nidhi, Gangi and Rajandeep have together written this blog.

बच्चों द्वारा मिला उपहार

ये कहानी है उन बच्चों की जिनके साथ मैं पिछले आठ महीनों से जुड़ा हुआ हूँ। इन बच्चों में दिखते बदलाव मुझे मेरे प्रयत्नों के फल के रूप में दिख रहे हैं।

ऐसे तो कई बच्चे हैं जिनमें मैंने कुछ ना कुछ परिवर्तन देखे हैं। लेकिन उनमें से भी एक बच्ची ऐसी है जिसके बारे में आगे बताने जा रहा हूँ।

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मेरी इन 8 महीने की यात्रा में मैंने इस बच्ची में सबसे ज्यादा बदलाव देखें। जिसके यहां मैंने अपनी पहली कम्युनिटी विजिट (उसके परिवार से मिला) की थी। ये बच्ची है कनिका, कक्षा के दौरान अब वो क्रियाशील रहती है और बे झिझक होकर के उत्तर देती हैं। अब हर एक बात को ध्यान से सुनती है। न केवल उत्तर देती है बल्कि कहीं जा रही बात पर प्रश्न भी करती है। बात पर तुरंत विश्वास करने की बजाय, वह उस बात की तह तक जाने का प्रयत्न करने लगी है। उसकी उत्सुकता का अब पारा-वार नहीं हो रहा है। इतनी उत्सुक हो जाती है वो कि मेरी बात पूरी होने से पहले ही प्रश्न पूछने लगती, जैसे कि वह प्रश्न उसने नहीं पूछा तो वह कहीं गायब हो जाएंगे या फिर जैसे उनका उत्तर नहीं मिल पाएगा।

ऐसा ही एक वाकया तब का है जब मैं बिजली (इलेक्ट्रिसिटी) पड़ा रहा था। बिजली की कहानी बुनने के बाद मैंने बेंजामिन फ्रैंकलिन के बारे में बताया कि उन्होंने किस तरीके से बिजली से जुड़ी चीजों को जानने की भरपूर कोशिश की, वो काफी उत्सुक व्यक्ति थे। न केवल बिजली को जानने में बल्कि हर काम  को जानने और उसे करने में उत्सुक रहते थे। एक बार बेंजामिन ने तार में बहने वाली बिजली और आकाश से गिरने वाली बिजली का अध्ययन कर उन्हें एक जैसा बताया। जैसे कि उनका आवाज़ करना, रोशनी करना और उनकी महक का एक जैसा होना। अंतिम बात कि आकाशीय बिजली की महक कैसे पता चल सकती है। बच्चे मानने को तैयार ही नहीं थे। वो कहते कि हमें आसमान से गिरने वाली बिजली की महक कैसे पता चल सकती है?

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उन्हें समझाने के लिए बताया कि जब बिजली आसमान से गिरती है तो हवा में उपस्थित ऑक्सीजन और नाइट्रोजन टूट जाती है और ऑक्सीजन ओज़ोन में बदलती है। और यदि हवा तेज चल रही हो तो वह महक हमारे पास पहुँचती है। इस तरीके से आसमान से गिरी बिजली की महक का पता चलता है पर ऐसा होने के लिए बिजली का हमारे नज़दीक गिरना आवश्यक है या आंधी का चलना।

बच्चे मेरी इस बात को मान ही नहीं रहे थे कि बिजली की महक हमें कैसे पता चल सकती है? कक्षा में हो-हल्ला मच गया। सभी अपने बगल वाले से फुसफुसाने लगे, प्रश्न करने लगे कि ऐसा कैसे हो सकता है? कनिका कहती कि भैया हम मान ही नहीं सकते। हमने तो कभी देखा ही नहीं है, हमने कभी ऐसा महसूस ही नहीं किया है। आप हमें झूठ बता रहे हो।

यह सब सुनकर मुझे अच्छा नही लगा कि बच्चे मेरी बात मानने को तैयार ही नहीं है जब कि मैं तो उनके लिए इतनी तैयारी करके आता हूं। 

बच्चों को विश्वास दिलाने के लिए मैंने एक उदाहरण लिया। जब बारिश कभी-कभार जब पड़ोसी मोहल्ले या कस्बे में बारिश होती है तो उसकी महक हमको पता चल जाती है।  एक महक नमी की, मिट्टी की। इसको सूंघकर हम बता पाते हैं कि कहीं आसपास बारिश हो रही है। बताते हुए मैंने बच्चों से कहा कि कभी आपने ऐसा तो महसूस किया ही होगा। तो इस पर बच्चे बोले कि हमने कभी नहीं महसूस किया। ऐसे ही न जाने कितने प्रश्न थे? दीपांशु कहता ऐसा नही होता है आप कुछ भी बता रहे हो।

बच्चों ने इस बात पर विश्वास नहीं किया। मै और क्या कहता उस वक़्त सिवाए इसके कि आप बारिश की महक कभी न कभी खुद महसूस करोगे।

स्कूल से लौटते वक्त मैं सोच रहा था कि बच्चे मेरी बात पर विश्वास नही करते हैं, मैं उन्हें और कैसे बता सकता था? क्या वाकई में उन्होंने कभी दूसरे कस्बे की बारिश की महक नही महसूस की? या फिर विश्वास न करने की हठ मात्र थी। 

पर यही समस्या जब मैने अपने साथी फेलो को बताई तो वह भी विश्वास नहीं कर रहे थे कि बिजली की महक होती है। भले ही वो बारिश की महक से रूबरू थे। पर साथी मान गए कि बिजली की महक हो सकती है?

कक्षा में बच्चों की इस बात पर विश्वास न करने पर उन्होंने कहा कि यह तो अच्छी बात है कि अब तुम्हारे बच्चे बिना सबूत के विश्वास नहीं कर रहे हैं। अब वह प्रश्न पूछ रहे हैं उनमें बदलाव आ गया है और वह वाकई में पहले से कितना बदल चुके हैं?

विज्ञान गणित के साथ-साथ कविताएं और कहानियों पर भी जोर देना मुझे अच्छा लगता है, क्योंकि ये भी उनके विकास में मददगार होते हैं। उन बच्चों के काम से खुश होकर उनपर लिखी मेरी पहली कविता को मैंने उन्हें सुनाया। दिल से निकली ये कविता कुछ इस प्रकार है।

जादूगर     

आप एक जादुई दुनिया में रहते हो!

पर मुझे अफ़सोस है कि जादूगर आप बन सकते हो, फिर भी इस बात से तुम अनजान हो।

 

एक वस्तु लोहे को बिना छुए उसे अपने पास खींच लेती है, बिना छुए। 

तुम पत्थर ऊपर फेंकते हो, और वो नीचे गिर जाता है।

नीचे ही तो गिरता है, ऊपर क्यों नहीं?

अगर नीचे ज़मीन है तो ऊपर आसमां भी तो है। 

 

तुम ऊपर से कूदते हो, फिर नीचे गिर जाते हो।

पर मज़बूत पंख लगा लो तो गिरने की बजाय उड़ते ही जाते हो।

पानी में लोहे को फेको तो वो डूब जाता है।

लोहे को जहाज़ बना दो, तैर जाता है।

 

तुम एक कदम बढ़ाते हो फिर दूसरा कदम, और ऐसा बार-बार करने पर तुम एक नयी जगह पहुंच जाते हो। नये नज़ारे देख पाते हो।

 

कितना लाज़वाब है सबकुछ।

तुम्हारे आस पास जादू ही तो हो रहा है।

 

कुछ धीमी आवाज़े हम नहीं सुन पाते हैं।

सुनामी, भूकंप आने के पहले ही जानवर छिप जाते हैं।

 

अगर आसमां साथ नही दे, तो तुम आसमान की ऊँचाइयों को छूने को न भागना।

– दिव्यांशु

27 नवंबर, 2019

 

अब एक पाठ खत्म हो जाने पर मैं उन्हें एक कविता लिखने को कहता हूं। जनवरी तक बच्चे कविताएं किताब से देख कर लिख लाते थे, पर एक रोज़ कनिका ने खुद से एक कविता बनाई जोकि इलेक्ट्रिसिटी (बिजली) पाठ से जुड़ी थी। कोई उसकी बात पर विश्वास ही नहीं कर रहा था। कुछ बच्चे कहते कि तुम खुद कैसे लिख सकती हो? तुमने फोन से लिखी है। मुझे विश्वास नहीं हुआ पर उसकी दृढ़ता और पंक्तियों ने बताया कि ये कविता उसी ने लिखी है। वह कविता कुछ इस प्रकार है।

 

 बिजली

 

जमीन बोले काहे तुम गिरियो,

आकर हमारा सर दर्द करियो।

बरसात में तुम यही करियो,

आकर हमें खुद से चिपकाए लियो।

बिजली बोले शांत रहियो,

हमारे बिन तुम अंधेरे लगियो। 

हमारी दोस्ती अमर रहे जैसे बिजली कड़क रही।

कनिका

6 फरवरी, 2020

 

सत्र के आखिरी पड़ाव पर मैंने उनके शब्द उनकी भाषा पर ज्यादा जोर दिया। और उस एक घंटे में सिर्फ कुछ मिनट पढ़ने पर दिए जिसमें वह कहानी कविताएं पढ़ते।

ऐसे ही आखिरी सप्ताह की एक रोज मैंने ‘बादल क्या है’ कविता पढ़ी और उनसे कहा कि आप में से हर एक बच्चा, एक लाइन का मतलब तो बताएगा ही। सभी बच्चे अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे थे। उनमें से कुछ बच्चे पंक्तियों का वर्णन काफी स्पष्ट तरीके से कर रहे थे। संजना का आसमान का रेगिस्तान से और बादल की ऊँट से तुलना, गौरव का पहाड़ से तुलना करना काफी लाजवाब था।

अंत में मैंने सभी बच्चों के विचारों को समेटे हुए सभी लाइनों का मतलब संक्षिप्त रूप से बताया। बताया कि कवि कैसे एक चीज़ के कई सारे गुण देखकर उन्हें दूसरी वस्तु से तुलना करके कविता लिखता है।

कविता पढ़ाने, पढ़ने का मुख्य उद्देश्य था कि बच्चे ये समझ जाएं कि कवि किस तरीके से सोचता है? और कविता लिखना कोई कठिन काम नही है।

इसके बाद मैंने उन्हें 5 मिनट का समय दिया कि आप लोग दो-दो के समूह में बैठकर एक नई पंक्ति बनाने के लिए अपने साथी के साथ चर्चा करो। चर्चा के बाद बच्चों ने अपनी लाइनें साझा किया। बच्चे जिनके कम नंबर आने की वजह से उन्हें बार-बार पीछे होने का आभास कराया जाता है, ने भी काफी अच्छी पंक्तियाँ सुझाईं। सभी बच्चों ने एक-एक लाइन तो सुझाई ही और अंत की दो पंक्तियाँ मैने भी सुझाईं। कविता कुछ इस प्रकार है।

 

बादल क्या है?

 

क्या बादल एक झील या तालाब है, या पानी से भरा एक बर्तन है। जो पहाड़ से टकराकर पानी गिरा रहा है।

क्या बादल एक फूल है जो जब मन आता है पंखुड़िया गिराता है, उगाता है।

क्या बादल एक जंगल है जो खुद को समर्पित कर दूसरों को जीवन देता है।

क्या बादल एक तालाब है या समुंदर है, जो जब चाहा सूख जाता जब चाहे भर आता है। 

 

या ये एक मछली है जो नीले आसमान में तैर रही है। 

या फिर एक नल है जो कभी भरभरा कर पानी उड़ेलता है तो कभी सूखे नल सा टप-टप-टप करता है।

क्या बादल हंस-सा है जो नीले तालाब में मस्त-मगन होकर तैर रहा है?

क्या बादल ननहार कक्षा के बच्चे हैं (अक्षय, शगुन, विवेक, कनिका, आर्यन, संजना, दीपांशु, सुनाक्षी, गौरव, आंशिका, राहुल, ईशा, मुस्कान सा है),

जो नीले कैनवास (बोर्ड) पर तरह-तरह की आकृतियां उकेरता है, नई-नई कविताएं रचते है।

-GMS ननहार, कक्षा के बच्चे

11 फरवरी, 2020

इसे सुनकर मेरे दिल को जैसा सुकून मिला मैं वो शब्दों में बयान नही कर सकता। लगा कि मेरी मेहनत सफल हुई। ऐसे परिणाम जो गणित, विज्ञान, कविता पर मुझे मिल रहे है मेरे द्वारा बदलाव के लिए उठाए गए कदमों के लिए सर्वोत्तम उपहार है।

ये प्यारे 14 बच्चे मेरी कर्मभूमि के अहम हिस्सों में से एक है। हमेशा याद रहेंगे…….

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तुम मुझे टूटे किबाड़ों से पटे घरों मे ले चलो, 

जिनकी दीवारें खुरची हुईं या ढहा दी गई हैं। 

वो नाम के घर जो दूर से देखने पर भरभराकर गिरने का और उसमें दब जाने का भय दिखाते हों।

ऐसे दिल के घरों तक तुम मुझे ले चलो।

जो निराशा, हताशा के जाल में बुन दिए गये हैं।

मैं वहां जाना चाहता हूं उनके निशां अनुभव करना चाहता हूं।

तुम मुझे ले चलो उजाड़ पड़े घरों मे, जहां रौशनी की लौ अभी नही जलाई गई है।

जहां अंधेरा ही उजाले का रूप ले इतराता है, और लोग खुश है इस फैले अंधेरे में।

 

सुकून हम उसकी दीवारों में पिरो देंगे।

हम बदल देंगे उसका ढांचा, दिलों में रोशनी भर देंगे।

सब्र न करो, बस मुझे ले चलो………

दिव्यांशु

12 फरवरी, 2020